SP ने BJP के ब्राह्मण कार्ड को कट दिया कुर्मी की मदद से, Akhilesh ने इस प्रकार का जाति जाल बुना

SP प्रमुख Akhilesh Yadav 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक के बाद एक गठबंधन के प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन अब तक वह BJP `को हराने का फॉर्मूला नहीं ढूंढ पाए हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में Akhilesh Yadav PDA के जरिए नया सियासी समीकरण लिखने में जुटे हैं. अपनी स्थापना के बाद से ही SP मुस्लिम-यादव कॉम्बिनेशन पर ही चुनाव लड़ती रही है, लेकिन इस बार उसने यादव-मुस्लिम की जगह कुर्मियों को राजनीतिक महत्व देकर BJP के खिलाफ एक ताकतवर जातीय कॉम्प्लेक्स तैयार कर लिया है. ऐसे में देखना यह है कि ‘कांटे से कांटा’ निकालने का Akhilesh का कदम कितना कारगर होता है?

उत्तर प्रदेश में BJP ने नई सोशल इंजीनियरिंग के जरिए न सिर्फ अपना सियासी वनवास खत्म किया है, बल्कि एक के बाद एक चुनावी लड़ाइयां जीतकर अपनी जड़ें भी मजबूत कर ली हैं. BJP अपने उच्च जाति, खासकर ब्राह्मण वोट बैंक को बरकरार रखते हुए गैर-यादव OBC और गैर-जाटव दलित समुदाय को जोड़ने में कामयाब रही. UP में OBC जातियों में यादव समुदाय के बाद कुर्मी समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा मानी जाती है, जो BJP का कोर वोट बैंक बन गया है. SP इस कुर्मी समुदाय को BJP से दूर कर अपने साथ जोड़ने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इसके लिए सपा ने BJP के ब्राह्मण कार्ड को काउंटर करने के लिए कुर्मी रणनीति खेली है.

SP ने कुर्मी उम्मीदवार उतारा

Akhilesh Yadav राज्य में कुर्मी समुदाय को अपने पाले में लाने और बनाए रखने की पैरवी कर रहे हैं. इसके लिए SP ने प्रदेश की 9 लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय से उम्मीदवार उतारे हैं, जो पार्टी में किसी एक समुदाय से सबसे ज्यादा उम्मीदवार हैं. कुर्मी समुदाय से लखीमपुर खीरी सीट पर उत्कर्ष वर्मा, बांदा सीट पर शिवशंकर पटेल, अंबेडकर नगर सीट पर लालजी वर्मा, बस्ती सीट पर रामप्रसाद चौधरी, प्रतापगढ़ सीट पर डॉ. एसपी सिंह पटेल, गोंडा सीट पर श्रेया वर्मा, पीलीभीत सीट पर भागवत शामिल हैं. श्रावस्ती सीट से सरन गंगवार और फतेहपुर सीट से राम शिरोमणि वर्मा और डॉ. अशोक पटेल को उम्मीदवार बनाया गया है.

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ब्राह्मण बनाम कुर्मी बिसात

समाजवादी पार्टी ने नौ में से पांच सीटों पर BJP के ब्राह्मण समुदाय के उम्मीदवार के खिलाफ कुर्मी उम्मीदवार उतारे हैं. इसके अलावा SP ने BJP के खिलाफ एक सीट पर ठाकुर, एक सीट पर मल्लाह और एक सीट पर वैश्य समुदाय से उम्मीदवार उतारा है. बांदा सीट पर भी SP ने कुर्मी दांव खेला है, वहीं BJP ने भी कुर्मी समुदाय से उम्मीदवार उतारा है. SP ने पांच सीटों पर ब्राह्मणों के खिलाफ कुर्मी दांव खेला है, जिसमें खीरी सीट पर BJP के अजय मिश्रा टेनी, अंबेडकरनगर सीट पर रितेश पांडे, बस्ती सीट पर हरीश द्विवेदी, श्रावस्ती सीट पर साकेत मिश्रा और पीलीभीत सीट पर जितिन प्रसाद शामिल हैं.

वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय कहते हैं कि सपा ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत BJP के ब्राह्मण उम्मीदवारों के खिलाफ अपना कुर्मी उम्मीदवार उतारा है, क्योंकि UP में कुर्मी और ब्राह्मण दोनों ही BJP का कोर वोट बैंक हैं. बांदा सीट को छोड़कर SP ने किसी भी सीट पर कुर्मी उम्मीदवार नहीं दिया, जिस पर BJP या अपना दल के कुर्मी उम्मीदवार थे. कुर्मी समुदाय के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो पार्टी से ज्यादा उनकी जाति के प्रति झुकाव है. इसी के चलते इस बार Akhilesh Yadav ने यादव से ज्यादा कुर्मी उम्मीदवार उतारे हैं और Akhilesh Yadav ने ब्राह्मणों के खिलाफ ब्राह्मण बनाम कुर्मी की सियासी बिसात बिछाने की कोशिश की है, जिसका मुकाबला करना BJP के लिए आसान नहीं होगा.

Akhilesh की रणनीति के मायने

दरअसल, सीधी लड़ाई की ओर बढ़ रहे उत्तर प्रदेश में अब लोकसभा चुनाव में जीत के लिए 40 फीसदी से 45 फीसदी वोट जरूरी हो गया है. वह भी तब जब कोई चुनाव को कुछ हद तक त्रिकोणीय बना दे. 2019 में BJP गठबंधन को 51 फीसदी वोट मिले थे. Akhilesh Yadav समझ चुके हैं कि करीब 27-28 फीसदी यादव-मुस्लिम वोटरों के सहारे वे लड़ाई में दिख तो सकते हैं लेकिन जीत नहीं सकते, इसलिए उन्होंने अपना वोट बेस बढ़ाने पर फोकस किया है और एम-वाई समीकरण की जगह PDA यानी PDA का सहारा लिया है. पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला दिया गया है, इसलिए इस बार SP ने यादव और मुसलमानों से ज्यादा कुर्मी और अन्य ओबीसी को मैदान में उतारा है.

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2022 के विधानसभा चुनाव में SP गठबंधन को करीब 37 फीसदी वोट मिले. इसमें अकेले SP को 10 फीसदी वोट बढ़े थे. CSDS सर्वे के मुताबिक, 2017 के मुकाबले 2022 में SP को 9 फीसदी ज्यादा कुर्मी वोट मिले हैं. इसलिए इस बार SP ने OBC के बीच सबसे ज्यादा भरोसा कुर्मी समुदाय पर किया है, जो फिलहाल BJP का कोर वोट बैंक माना जाता है. इस बार SP ने 2019 चुनाव की तुलना में कुर्मी समुदाय से दोगुने उम्मीदवार उतारे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम कहते हैं कि SP ने काफी रणनीति के साथ कुर्मी उम्मीदवार दिए हैं ताकि BJP के कुर्मी उम्मीदवारों से कोई टकराव न हो. SP को पता है कि BJP के कुर्मी बनाम सपा के कुर्मी के बीच लड़ाई की स्थिति में कुर्मियों का झुकाव BJP की ओर हो सकता है. इसीलिए Akhilesh ने BJP के ब्राह्मण उम्मीदवारों के खिलाफ कुर्मी उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे कुर्मी समाज का वोट SP को मिल सकता है. कुर्मी समुदाय के लिए पार्टी अपने उम्मीदवार को तरजीह देती है. 2022 में उनके पास OBC समुदाय से जीतने वाले सबसे ज्यादा विधायक कुर्मी समुदाय से थे. वह BJP, SP और Congress से भी जीत चुकी हैं.

UP में पिछड़ी जातियों में यादव समुदाय के बाद कुर्मी समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा मानी जाती है. माना जाता है कि पिछड़ी जातियों में कुर्मी करीब आठ फीसदी हैं. राज्य की करीब 35 लोकसभा सीटों पर कुर्मी मतदाताओं का प्रभाव है, जबकि राज्य में 25 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां से कभी न कभी कुर्मी सांसद चुने गए हैं. वर्तमान में 41 कुर्मी विधायक हैं, जिनमें से 27 BJP, 13 SP और एक Congress से हैं. पांच विधान परिषद सदस्य भी कुर्मी हैं. 80 में से आठ सांसद भी कुर्मी समुदाय से हैं. Yogi सरकार में तीन कैबिनेट मंत्री और एक राज्य मंत्री कुर्मी समुदाय से हैं. SP के प्रदेश अध्यक्ष कुर्मी हैं, जबकि BJP के स्वतंत्र देव सिंह पहले अध्यक्ष रह चुके हैं.

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